Kaise Karun Shukriya Aapka – A Poem

कैसे करूँ शुक्रिया आपका, रफी साहब, नहीँ है कोई बताता

समझ नहीँ आया अबतक, आप इंसान थे या कोई फरिश्ता

 

सुर ऊपर जाते हैं जब आपके, लाखों दिल बैठ से जाते हैं

और उतरते हुवे सुरों से जैसे, सैकड़ों साँसे रुक सी जाती हैं

इन सुरों के ज्वार भाटों मे, रूहों के पहाड़ से बह जाते हैं

कैसे करूँ कहाँ करूँ शुक्रिया आपका, नहीँ है कोई बताता

समझ नहीँ आया अबतक, आप आदम थे या कोई फरिश्ता

 

मुर्कियां देते हैं जब आप, बेखुदी में वाह वाहें निकलती हैं

आलाप तान तो आपके, मुर्दों में भी जान फूंक देती हैं

ये कैसे गाया, वो कैसे गाया होगा, ये सोच बेचैनी देती हैं

कैसे करूँ कहाँ करूँ शुक्रिया आपका, नहीँ है कोई बताता

समझ नहीँ आया अबतक, आप आदम थे या कोई फरिश्ता

 

रुलाया है, हसाया है, जगाया है, सुलाया है, बिसराया है

ना जाने कैसे कैसे आपने, लाखों रूहों को बहलाया है

आपसे ही उनकी दुआऐं हैं, वो भी आपके साथ ही हैं

कैसे करूँ कहाँ करूँ शुक्रिया आपका, नहीँ है कोई बताता

समझ नहीँ आया अबतक, आप आदम थे या कोई फरिश्ता

 

यक़ीन है हर उस मुरीद को, जो आपको मसीहा मानता है

कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, आपको वापस तो आना है

ये और बात है कि आओगे कब, मेरे जाने से पहले या बाद

कैसे करूँ कहाँ करूँ शुक्रिया आपका, नहीँ है कोई बताता

समझ नहीँ आया अबतक, आप आदम थे या कोई फरिश्ता

 

(बलवंत वाधवानी – ३१ जुलई, २०१९)

 

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