मोहम्मद रफ़ी था इस धरती पर, मालिक का नज़राना।
उसकी मधुर आवाज़ का अब भी, ये जग है दीवाना।
उसके मस्ती भरे तराने, दिल की कली खिलाते।
उसके दर्दीले नग़में भी, मन के तार हिलाते।
उसकी तान रसीली करती, है सब को मस्ताना।
मोहम्मद रफ़ी था इस धरती पर, मालिक का नज़राना।
वो ही नग़मा अमर हो गया, जिसको उसने गाया।
उस पारस ने लोहा छू कर, सोना उसे बनाया।
छोड़ गया अपनी यादों का, इक अनमोल ख़ज़ाना।
मोहम्मद रफ़ी था इस धरती पर, मालिक का नज़राना।
जिस दिन उसका उठा जनाज़ा, आसमान था रोया।
सबने उसको बहुत पुकारा, मगर रहा वो सोया।
उस आवाज़ के जादूगर को, ना भूलेगा ज़माना।
मोहम्मद रफ़ी था इस धरती पर, मालिक का नज़राना।
– ईश्वरचंद्र चंचलानी (उज्जैन)