Taarif-e-Rafi Sahab – A Poem

तारीफ़-ए-रफ़ी साहब

आप हैं दिलकश दास्तान, जिसे किया जहान ने बयान।
इक गहरा रिश्ता बन गया, अब दोनों के दरमियान।।

आपने जिसको राह दिखाई, उसके आप बने मसीहा।
आपने जिसकी तकदीर बदली, उसने माना आपको खुदा।।

तय नहीं कर पाया कोई कि, आप इंसान हैं या हैं भगवान।
आप दिलकश दास्तान हैं, जिस किया जहान ने बयान।।

गीत संगीत का वो दौर, फिर लौटकर ना आएगा।
आप सा फनकार कोई, दुबारा नहीं आयेगा।।

ये सारा जहान हो गया, आप ही पर कुरबान।
देखकर ये सारा नज़ारा, दिल मेरा हुआ हैरान।।

आपको किसी ने मेहताब कहा, तो किसी ने आफताब।
लेकिन सबको साहिबजी, आप ही लगे लाजवाब।।

आपकी तारीफ करते करते, थकती नहीं मेरी जुबान।
मिट सकता नहीं कभी भी, आपके गीतों का गुलसितान।।

आपकी किसीने की इबादत, तो किसीने सजदा किया।
ऐ नाखुदा सबके कोई हो, न सका आपसे कभी जुदा।।

सारे जहान को रफ़ी साहब, आप पर ही है गुमान।
सच कहता हूं साहेब मेरे, आप सबसे हो महान।।

आप ही की इक झलक पर, कुरबां हुआ है सारा जहान।
हर किसीने कहा हमेशा, रफ़ी साहब हैं सबसे महान।।
रफ़ी साहब हैं सबसे महान, रफ़ी साहब हैं सबसे महान।।

हेमंत देसाई (उल्हासनगर)

 

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